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संत और तोता

  • Writer: Dr. A K Yadav
    Dr. A K Yadav
  • Oct 13, 2022
  • 2 min read

Updated: Oct 19, 2022

एक संत के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया। और उसे पिंजरे में रख दिया। संत ने कई बार शिष्य से कहा कि इसे कैद ना करो। परतंत्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है। पर शिष्य अपने बाल सुलभ कोतुहल को रोक ना सका। उसने तोते को पिंजरे में ही बंद रहने दिया।


तब संत ने सोचा कि तोते को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए। वह हर दिन तोते के पास जाने लगे। और उसे नित्य ही सिखाने लगे “पिंजरा छोड़ दो उड़ जाओ”। कुछ दिन में तोते को वाक्य भली भांति रट गया।


तब एक दिन सफाई करते समय शिष्य से भूल से पिंजरा खुला रह गया। संत कुटी में आए तो देखा तोता पिंजरे से बाहर निकल आया है। और बड़े आराम से इधर-उधर घूम रहा है। साथ ही ऊंचे स्वर में कह भी रहा है। “पिंजरा छोड़ दो उड़ जाओ”। संत को आता देख वह अपने पिंजरे में अंदर चला गया। और अपना पाठ जोर जोर से दोहराने लगा।


संत को यह देखकर आश्चर्य हुआ। साथ ही वह दुखी भी हुआ। यह वह यही सोचते रहे कि इसने केवल शब्द को ही याद किया। यदि इसका अर्थ भी जानता तो यह इस समय पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता।


शिक्षा


हम सब ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें सीखते और करते हैं। पर उसका मर्म समझ नहीं पाते उचित समय और अवसर मिलने पर भी उसका लाभ नहीं उठा पाते और जहां के तहां रह जाते हैं। हम रोज कितने ही मंसूबे गड़ते रहते हैं सोचते बहुत हैं बस सोचे हुए पर टिकते नहीं हैं। फिर झुँझलाते हैं और खुद पर लापरवाह आलसी और नाकाबिल होने के ठप्पे भी लगाते हैं। दरअसल सोचना ही काफी नहीं होता खुद को बेहतर भी बनाना होता है।।


जो प्राप्त है, पर्याप्त है पर कौशिश करते रहिए। सदैव प्रसन्न रहिये।।


"दौलत और अमीरी इंसान को थोडे़ वक्त के लिए बड़ा बनाती है, लेकिन इंसानियत और अच्छे विचार इंसान को हमेशा बुलंद रखते हैं"

 
 
 

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